Success story कोरोना के दौरान किसानों की हालत देख शुरू की स्ट्रॉबेरी की खेती farmers की प्रेरणा बने sagar के अनिरुद्ध दांगी

अपने खेत से स्ट्रॉबेरी ले जाते अनिरुद्ध सिंह दांगी।

दीपेन्द्र तिवारी, स्वतंत्र पत्रकार

कुछ कर गुजरने की चाह विपरीत परिस्थितियों में भी सफलता की राह खोल देती है। सफलता की एक ऐसी ही कहानी केसली, सागर, मध्य प्रदेश (sagar, Madhya Pradesh) में स्ट्रॉबेरी (Strawberry) की खेती करने वाले एडवोकेट अनिरुद्ध सिंह दांगी लिख रहे हैं। अपने पहले ही प्रयास में स्ट्रॉबेरी का उत्पादन कर लोगों के लिए प्रेरणा बने अनिरुद्ध गेहूं, चना जैसी पारंपरिक फसलें लेने वाले बुंदेलखंड (bundelkhand) के किसानों (farmers) को नए कृषि (agriculture) प्रयोगों के लिए तैयार करना चाहते हैं।

कृषि कार्यों में कभी रुचि न लेने वाले अनिरुद्ध स्ट्रॉबेरी की खेती में लगाई पूंजी का करीब एक तिहाई वसूल चुके हैं। वे कहते हैं, पहले मेरे मन में कभी भी इस तरह का कुछ करने का विचार नहीं था। जब देश कोरोना महामारी से लड़ाई लड़ रहा था, उसी समय मुझे अपने शहर केसली आकर किसानों की दयनीय स्थिति का अंदाजा हुआ। तभी मैंने पारंपरिक फसलों से हटकर नए कृषि प्रयोग करने का मन बना लिया। इससे पहले मैं इंदौर (indore) में बच्चों को प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कराता था।

बीते वर्षों से बुंदेलखंड के किसानों को प्रकृति की बेरुखी का सामना करना पड़ रहा है। कोरोना (corona) ने भी आर्थिक रूप से उनकी कमर तोड़ दी है। क्या ऐसे में किसान नए प्रयोगों को अपनाने के लिए तैयार होंगे? के सवाल पर अनिरुद्ध कहते हैं, यह समस्या सभी फसलों के साथ पेश आना स्वाभाविक है। हालांकि, कुछ तकनीकी उपाय कर हम काफी हद तक प्रकृति के प्रकोप से बचने में सफल हो सकते हैं।

अनिरुद्ध कहते हैं, आज के हालात में पारंपरिक फसल लेने वाले अधिकतर किसान शायद ही उस फसल की लागत वसूल पाने में सफल हो पाते होंगे। ऐसे में दिन-ब-दिन कमजोर हो रही आर्थिक स्थिति को संभालने और रोजाना बढ़ रहे खर्चों तथा जरूरतों को पूरा करने के लिए किसानों को नगदी फसलों का सहारा जरूरी है।

फसल बीमा ने आर्थिक नुकसान से बचा लिया

सकारात्मकता और धैर्य को सफलता का मूल मंत्र मानने वाले अनुरुद्ध कहते हैं, शुरुआत में स्ट्रॉबेरी के करीब-करीब सभी पौधे मर गए थे। किसी भी नए काम को शुरू करते समय इस तरह की परेशानी आना आम बात है। चूंकि, तकनीकी रूप से मैंने पौधे लेने से पहले ही उनका बीमा करवा लिया था तो मुझे कोई आर्थिक हानि नहीं हुई। ठीक इसी तरह सकारात्मक सोच और धैर्य के साथ तकनीकी जानकारी किसानों को नुकसान से बचा सकती है।

स्ट्रॉबेरी के बाद ब्रोकली, थाईलैंड अमरूद की भी तैयारी

क्षेत्रभर से अब तक स्ट्रॉबेरी की फसल देखने के लिए 1500 से ज्यादा लोग आ चुके हैं। इनमें से 60 से 70 लोग अनिरुद्ध के संपर्क में हैं। अनिरुद्ध अब ब्रोकली, तरबूज, खरबूज, चंदन, थाईलैंड अमरूद, कटहल, सेब और चीकू उत्पादन की तैयारी में हैं।

सरकार से मिला हर संभव सहयोग का आश्वासन

सरकारी योजनाओं और मदद को लेकर अनिरुद्ध कहते हैं, सरकार तमाम योजनाएं बनाती हैं, पर उनका लाभ सभी को नहीं मिल पाता। इसके पीछे कई कारण हो सकते हैं, पर उनमें से अशिक्षा सबसे बड़ा है। अब तक उनके खेत पर विकास खंड स्तर से लेकर जिले और संभाग के कई विभागों के आला अधिकारी विजिट कर उनकी पीठ थपथपा चुके हैं। हर संभव मदद और सरकारी योजनाओं तथा तकनीकी सहयोग का आश्वासन दिया है। अनिरुद्ध कहते हैं, सरकार के सहयोग से किसानों को नए कृषि प्रयोगों के लिए सेमिनार, बैठक, ग्रुप डिस्कशन, कार्यशाला जैसी एक्टिविटी शुरू की जाएंगी।

प्रोडक्ट है तो मार्केट है

पारंपरिक फसलों को छोड़कर जब भी किसी नगदी फसल का उत्पादन किसान शुरू करते हैं तो सबसे बड़ी समस्या होती है उत्पाद के लिए मार्केट तलाशने की। इस समस्या को हल करने के लिए अनिरुद्ध ने सोशल मीडिया को अपना हथियार बनाया है। स्ट्रॉबेरी के उत्पादन की जानकारी लगते ही आसपास से डिमांड शुरू हो गई। रोजाना लोकल में ही करीब तीन से चार हजार रुपए की स्ट्रॉबेरी बिक रही है। जबलपुर, भोपाल, सागर, मंडला, नरसिंहपुर के साथ ही छतरपुर और टीकमगढ़ जिलों से भी डिमांड आ रही है।

400 रुपए किलो तक बिक रही स्ट्रॉबेरी

स्ट्रॉबेरी की पैकिंग का काम अनिरुद्ध अपने फार्म हाउस पर ही कर रहे हैं। दो सौ ग्राम के एक डिब्बे में 10 पीस निकलते हैं, जिसकी कीमत 60 रुपए है। किलो के हिसाब से स्ट्रॉबेरी का दाम 350 से लेकर 400 रुपए किलो चल रहा है।

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