corona संक्रमितों के इलाज में जुटे doctor की यह post आपको भीतर तक झकझोर देगी

प्रतीकात्मक फोटो।

क्यों भारत कोरोना में नंबर वन बनने की ओर अग्रसर है? निम्न धारणाएं करोड़ों लोगों में पूरी तरह से घर की हुई हैं। यहां धारणा प्रधान भीड़ है। वैज्ञानिक ज्ञान न होने में कोई बुराई नहीं है, लेकिन दृष्टिकोण न हो और उसे ही ज्ञान समझ लेना, फिर उसे प्रचारित भी करना समस्या है। हर वैज्ञानिक बात को कोई साजिश कहकर, जिसका सिर-पैर कुछ भी न हो, खारिज कर देना और किसी भी सेंसेशनल कांस्पीरेसी थ्योरी के प्रति गजब का आकर्षण होना, हमारी भीड़ का चरित्र रहा है।

हम कोरोना में ही नहीं, टीबी, डायबिटीज, डायरिया, न्यूमोनिया, शिशु मृत्यु दर, खसरा,  एक्सीडेंट्स  समेत कई अन्य रोगों में भी टॉप-3 पोजीशन पर रहते आए हैं। 1918 में स्पेनिश फ्लू से दुनिया में 5 करोड़ लोग मरे थे, जिनमें 2 करोड़ भारत में थे। आंकड़े हमारी सोच, योजना, कर्तव्यों के पालन, वैज्ञानिक दृष्टिकोण और अवैज्ञानिक या वैज्ञानिक सोच का सीधा परिणाम होते हैं, लेकिन हम कभी भी नापे जा सकने वाली या गिने जा सकने वाली चीजों से अपना आकलन नहीं करते। अब कुछ बेहद अजीबो-गरीब धारणाएं, जिन्हें मन से निकालना असंभव है, लाखों लोगों के मन में हैं।

1. कोरोना पॉजिटिव बताने पर डॉक्टर/अस्पताल को डेढ़ लाख रुपए मिलते हैं, इसलिए फालतू में कोरोना पॉजिटिव बताया जा रहा है।

अब इस हास्यास्पद, मूर्खतापूर्ण धारणा पर मैं तर्क, एविडेन्स देकर ऊर्जा खर्च करूं?  और क्या मेरे तर्कों से इनकी धारणा बदलेंगी…नहीं। इन्हें सपने में टेस्टिंग से लेकर अकाउंट में डेढ़ लाख डालने तक की सारी जानकारी स्वतः आ गई। 

2. सबसे अधिक निकृष्ट धारणा, डेड बॉडी से ऑर्गन निकाले जाते हैं और बेच दिया जाता है। इसलिए कोरोना बताकर गंभीर मरीज़ को भर्ती कर लेते हैं।

मैं निःशब्द हूं, इन लोगों के कोरोना पर ज्ञान, डेथ पर ज्ञान और ऑर्गन ट्रांसप्लान्ट की प्रक्रिया पर ज्ञान के। उससे भी बढ़कर इंसानों पर इस कदर अविश्वास पर। कुछ भी नहीं समझाना चाहता।

हरिशंकर परसाई ने कहा था, “मूर्खता का आत्मविश्वास सबसे बड़ा आत्मविश्वास होता है।” इस आत्मविश्वास से भिड़ना मतलब हारना ही है।

3. अपनी बुद्धिमत्ता पर आत्ममुग्ध होकर ढेरों लोग, आपको ये ज्ञान देते मिल जाएंगे कि वायरस तो बेहद महीन होता है, ये मास्क से बच ही नहीं सकता, जबकि मास्क पहनने से ऑक्सीजन की कमी हो जाती है और लोग मर जाते हैं।

मैं एक बार फिर कुछ भी नहीं समझाना चाहता, लेकिन बहुत से अपनों के लिए एक बार समझा देता हूं। हां, यह सच है, ये वायरस बेहद महीन ( RNA वायरस 100 माइक्रोन) है, लेकिन यह उड़ कर मास्क से नहीं निकलेगा, बल्कि इसे saliva (लार) से बनी droplet (बूंदों) का साथ चाहिए, जो वायरस से हज़ारों गुना बड़ी होती हैं। एक droplet में 1 लाख से 10 लाख तक वायरस हो सकते हैं।

मास्क droplet को अगले व्यक्ति तक पंहुचने से रोकेगा। साथ ही सामने वाले से आप तक आने को भी रोकेगा।

4. एक वीडियो आप लोगों ने भी देखा होगा और चिकित्सकों को मिलने वाली हज़ारों गालियों में आपके कमेंट और शेयर भी होंगे।

मुंबई का एक अस्पताल, वीडियो में कुछ गुंडे सी शक्ल के लोग, बिना मास्क कोरोना आईसीयू में हैं, PPE kit पहनी नर्स को गंदी से गंदी गालियां, वेश्या इत्यादि कह रहे हैं। एक व्यक्ति, जिसकी सांस नहीं दिख रही वीडियो में, को छूकर देखते हैं, कहते हैं बॉडी गर्म है, ये ज़िंदा है। नर्स को धमका कर बंद वेंटिलेटर को ज़बरदस्ती चालू करवाते हैं, फिर वेंटिलेटर पर कुछ रीडिंग पढ़कर और चिल्लाने लगते हैं, ये ज़िंदा है और गंदी गालियां, मारने को उतारू।

आईसीयू में और भी मरीज़ हैं, उनका इलाज अवरुद्ध होता है, बिना मास्क, जूतों के साथ संक्रमण फैलाते घूमते लोग, दहशत फैलाते लोग और कमेंट में सारी जनता इनके साथ है। लोग इन गालीबाजों के त्वरित ज्ञान और छूकर देखने से पूर्णतः आश्वस्त हैं कि वह सही बोल रहा है, उसे जीवित और डेथ देखना, बिना किसी के सिखाए आ गया। trained चिकित्सक, जिसे सबकुछ लीगली डॉक्यूमेंट भी करना है, गलत है।

उन गुंडों की भाषा और शक्ल बता रही है कि इन्हें बायोलॉजी का बी भी नहीं पता है। कोई व्यक्ति मृत हो गया है, ये जानने के लिए एक चिकित्सक को एक साल की ट्रेनिंग लग जाती है। उसे टॉर्च, स्टेथो, ECG मशीन जैसे टूल की भी आवश्यकता होती है।

ये ज़ाहिल बॉडी गर्म है देखकर और वेंटिलेटर पर कुछ नंबर देखकर समझ गया कि वो ज़िंदा है। वीडियो तब काट दिया जाता है, जब ECG लीड लगाकर उन लोगों को एक डॉक्टर दिखाना चाहता है कि व्यक्ति मृत है।

चलो वो लोग emotionally charged up थे, लेकिन सोशल मीडिया पर शेयर करने, भद्दे कमेंट करने वाले और डॉक्टरों को फांसी दो कहने वाले क्या थे?

हेल्थ पर्सन पर कोरोना काल में हमले पर कोई कार्रवाई?

नहीं…,

और आप चाहते हैं, ये लोग खुद की और अपने परिवारों की जान आप पर न्यौछावर कर दें।

5.  कोरोना कुछ नहीं है, साज़िश है, भ्रम फैलाया गया है…

अरे महाज्ञानियों, मेरे सीटी स्कैन में और हज़ारों लोगों के सीटी स्कैन में किस साज़िश ने पहली बार न्यूमोनिया दिखा दिया?

करीब 500 डॉक्टर और परिजन मर गए, ये कैसी साज़िश की हमने?

दुनियाभर की अर्थव्यवस्था चरमरा गई, राजनेता अलोकप्रिय होने लगे… ये कैसी साज़िश की सबने, कंपनियां घाटे में चली गईं, बैंक डूबने लगे… खुद का जानी, माली नुकसान किया।

घंटों अपने सर पर काम लादते हेल्थ पर्सनल, किस साज़िश का हिस्सा हैं?

सभी देशों के प्रधानमंत्री या राष्ट्रपति गलत हैं, विश्व स्वास्थ्य संगठन गलत है, वैज्ञानिक गलत हैं, शोध-पत्र गलत हैं, देश में सारे कलेक्टर गलत हैं, शमशानों में बढ़ती लाशें गलत हैं, अस्पतालों में बेड के लिए परेशान होते लोग गलत हैं।

लोग साज़िश का हिस्सा बन भटक रहे हैं अस्पतालों में? जिससे भय बढ़े। है न… महाज्ञानी जी…

लोग फेंफड़ों में निमोनिया डाल ले रहे हैं, जिससे भय फैले।

सही है न महाज्ञानी जी…

लोग खुद को मार ले रहे हैं, साज़िश का हिस्सा बनकर। सही कहा… सही कहा…

इस पर भी ज्ञानी जी का कहना है, दवाओं से मर रहे हैं…

ठीक है मान लिया… लेकिन ये तो बताओ ज्ञानी जी कि घर पर कम होती ऑक्सीजन और सांस में दिक्कत किस दवा से हुई थी।

6. जब दवा है ही नहीं तो अस्पताल भर्ती क्यों कर रहे हैं, जबकि ढेरों लोग तो बिना दवा खाए ही ठीक हो रहे हैं। ऐसा आपका न सिर्फ़ मानना है, वरन वे अपने इस ज्ञान से औरों को अभिभूत भी कर रहे हैं।

तो भाई मैं मूर्ख को तो समझा सकता हूं, लेकिन मूर्खता के आत्मविश्वास वाले ज्ञानी को नहीं।

इस पॉइंट पर मैं आपको आपकी नियति से उत्तर पाने के लिए छोड़ दे रहा हूं। आपके इस ज्ञान के भुक्तभोगी आपके अतिरिक्त आपके करीबी खासकर माता-पिता अवश्य होंगे, क्योंकि कोरोना अब हवाई जहाजों, एयरपोर्ट पर नहीं, आपके घर पर दस्तक दे रहा है।

अपने-अपने शहर के शमशानों के आंकड़ों की तुलना करो, पिछले वर्ष से साज़िश में शामिल मृत लोग दिख जाएंगे। पूछो, उन लाशों से क्यों भय फैलाने मरे हो न?

मेरे प्यारे देश को अवैज्ञानिक धारणाओं ने जितना नुकसान पंहुचाया है, उतना ही नुकसान सोशल मीडिया ने मूर्खता के तेज़ प्रसार का टूल बन कर किया है।

(कोविड-19 का इलाज करने में जुटे डॉक्टर का वॉट्सएप मैसेज)