… जब भोपाल की खुली सड़क पर बाघ से हो गईं आंखें चार

बाघों के मूवमेंट की गंभीरता को सामने लाने के कोशिश में जो हुआ, वह अजय और मेरे लिए यादगार बन गया है। उस घटना को शब्दों में बयां करना मुश्किल है, लेकिन शब्दों के साथ नत्थी अजय के फ़ोटो के साथ देखने पर शायद आपको मामले की बेहतर जानकारी हो जाए।   मैं और फोटोग्राफर साथी अजय शर्मा कई दिनों से भोपाल शहर से लगे कलियासोत में घूम रहे बाघों को कवर करने के लगातार प्रयास कर रहे थे। बाघिन टी-123,2 ने इस इलाके में दो शावकों को जन्म दिया है। वह शावकों के साथ कलियासोत के जंगलों में मूवमेंट कर रही है। इस इलाके में चैनल लिंक फेसिंग का काम पूरा नहीं होने के चलते बाघिन छोटी फेसिंग से बाहर आ जाती है। हम लगातार अलग-अलग समय पर इन जगहों पर पहुंचकर नजर रखे हुए थे। इसी क्रम में 28 अगस्त को हमने कलियासोत के जंगलों की ओर जाने का प्लान बनाया। सूचना आई थी कि कलियासोत बांध से कुछ घडिय़ाल और मगरमच्छ भी बाहर निकलकर इसी ओर आ रहे हैं।

अजय और मैं दोपहर में किसी समय तेरह शटर से बुल मदर फार्म जाने वाली रोड पर पहुंचे, इसी सड़क के किनारे घडिय़ाल निकलने की सूचना थी। काफी देर तक यहां-वहां तलाशने पर भी ऊंची लहरों के अलावा कुछ नजर नहीं आया। घने बादल किसी भी समय बरसने को बेताब थे। इशारा था कि लौट चलना चाहिए, लेकिन फिर अजय से आंखें टकराई तो वही बात दिखी…एक चक्कर अंदर का लगा आएं। मैं मुस्कुरा दिया। सात जुलाई को बाघिन के यहां से निकलने के एक महीने बीतने के बीच हम दोनों एक साथ या अलग-अलग इस सड़क के 20 से ज्यादा चक्कर मार चके थे।

हमने जंगल के बीचो-बीच बने स्कूल के रास्ते की ओर मोटरसाइकिलें मोड़ दीं। सड़क की चढ़ाई पूरी होते ही इंजन बंद कर दिए और पांव से पहिए लुढ़काने लगे। मैं अजय से 10-15 फीट आगे था,  अगले मोड़ को पार करते ही ऐसा लगा मानो एक परछाई सी रोड के आर-पार हुई है, जब तक आंखें ठहरती वह आकृति फेसिंग के पास थी। मुझसे मात्र 20-25 फीट की दूरी पर आगे। मेरी नजरें ठिठकी थी, लेकिन उसके कदम नहीं, लगभग पांच फीट की फेसिंग उसने यूं कूदकर पार की, जैसे सड़क पर पड़ी किसी ईंट या छोटे से पत्थर पर से चलकर गुजरने के बजाय मस्ती में हल्का सा उछलकर निकलने का मन हो। परछाई के लहराने के बीच मेरे हाथ बार-बार हिलते हुए अजय को कई इशारे कर चुके थे। हलचल भांपकर परछाई भी फेसिंग से कुछ फीट की दूरी पर रुक गई। यह वह बाघिन नहीं थी, जिसका सामना वन दस्ता इस सड़क पर पिछले महीनों में दो बार कर चुका था। कुछ पतले चुस्त शरीर के बजाय छोटे पेड़ की आधी ऊंचाई तक पहुंचता बड़ा भारी शरीर और उसी अनुपात में बड़ा सिर। ओह!!!!! यह तो कोई और ही नर बाघ है!!!!! उसकी चमकती आंखें ऐसी थी, मानो अब तक पढ़े-सुने गए सारे सबक भुला देना चाहती हों। मैं जड़वत खड़ा था, शायद 15 सेकेंड बीते होंगे। सिर को झटका दिया, सबक याद आ गया। उसकी आंखों में देखते रहना है, हाथ ऊपर कर लेता हूं, जिससे उसे ऊंचा प्राणी दिखाई दूं।

इस बीच, कनखियों से देख चुका था, अजय कांपते हाथों से कैमरा निकाल रहे थे। ऐसे माहौल में भी मुझे हंसी आई कि हर बार इस सड़क पर मुड़ते समय शर्मा जी अपना कैमरा बैग से निकालकर टांग लेते थे तो मैं अपना मोबाइल ऊपर वाली जेब में रख लेता था, आज हम सिर्फ यूं ही निकल आए थे, यूं ही… और आज ही यह हुआ। वह सीधे मेरी आंखों में देख रहा था। मुझे डर लगना चाहिए था, लेकिन खुशी हो रही थी कि जब तक इसकी आंखें मेरी ओर हैं, अजय को सामने से कुछ फोटो मिल जाएंगे, वरना हम तो सिर्फ पीठ देख पाए थी, जिसकी फोटोजेनिक वैल्यू जीरो थी। शटर की कुछ हलचल होते ही अजय ने मेरी ओर देखा,अब क्या करें? वह हमसे सिर्फ दो या तीन छलांग की दूरी पर था, तय था हमें खड़े रहना है। कुछ सेकेंड्स और बीते होंगे कि सामने से एक लग्जरी काली कार आती दिखी। उसमें दो युवतियां बैठी हुई थी, हमने हाथ के इशारे से उन्हें रुकने को कहा, लेकिन हमारे हाथ दिखाने को अनदेखा करती हुई वह और आगे तक बढ़ती चली आ गईं, यही वो कुछ सेकेंड थी कि मेरी आंखें उसकी आंखें से हट गईं और जब तक वापस निगाह पेड़ तक पहुंचाई तो वहां कुछ नहीं था। पेड़ वहीं था, चट्टान भी थी, लेकिन बाघ नहीं था, जैसे वह कभी वहां हो ही नहीं…।

सांसें थमी तो कैमरा प्रिव्यू में फोटो देखा हां वह सच में वहीं था, मेरी आंखों की तरह ही ठीक उसी समय कैमरे के लैंस में भी आंखें मिलाता हुआ… ज़ैसे कह रहा हो, मेरे रास्ते में मत आओ, प्लीज।

(प्रवीण मालवीय की फेसबुक वॉल से, फोटो – अजय शर्मा)