उत्तराखंड की राजधानी देहरादून में सहस्त्रधारा रोड के करीब एक मौसमी नदी बहती थी। 2003 के इस गूगल अर्थ में उसे साफ देखा जा सकता है। विकास की अंधी आंधी में किसी नीति-नियंता के मन में विचार आया कि नदी के ऊपर आईटी पार्क बनाया दिया जाए। गूगल अर्थ में साफ दिख रहा है।
आज की तारीख में भी देखें तो गूगल मैप पर नाला पानी की राव नाम से जलधारा अंकित है। भले लोग भूल गए, लेकिन प्रकृति कहां भूलने वाली है। इस साल में पानी ने अपना बदला लिया। इंसान का बसाया आईटी पार्क बाढ़ से घिर गया। ये तो बस चेतावनी है। जानें कितने ही प्रकृतिक नदी-नालों का हमने अपनी महत्वाकांक्षाओं को पूरा करने के लिए अतिक्रमण कर लिया है। कोरोना में लॉकडाउन के दौरान सबने देखा कि कैसे प्रकृति ने खुद को रिवाइव करना शुरू किया। इंसान के पास मौका है, वो अब भी सुधर जाए, वरना प्रकृति का बदला यूं ही जारी रहेगा।