गांव से युवाओं का पलायन रोकने के लिए किसान ने 30 साल में खोद डाली 3 किलोमीटर लंबी नहर

किसान लौंगी भुईयां और उनकी नहर बनने के बाद जमा पानी। फोटो : साभार एएनआई

कर्नाटक के 82 वर्षीय कामेगौड़ा याद हैं, जिनका जिक्र कुछ दिनों पहले मन की बात कार्यक्रम में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किया था। राज्य के दासाना डुड्डी गांव के चरवाहे कामेगौड़ा ने बरसाती पानी को रोकने के लिए पहाड़ पर कई लघु बांध बना दिए थे। कामेगौड़ की तरह ही बिहार में एक और भागीरथ मिल गए हैं। लौंगी भुईयां नाम के 70 वर्षीय किसान ने पहाड़ को काटकर तीन किलोमीटर लंबी नहर खोद दी है, ताकि गांव के तालाब में पानी आ सके। इस काम को पूरा करने में उन्हें 30 साल लगे। उनकी मेहनत का नतीजा यह है कि आज तीन गांवों में पानी की समस्या दूर हो गई है।

बिहार के गया से 80 किलोमीटर दूर लैहथुआ क्षेत्र में पहाड़ों और जंगल से घिरा कोठीलावा गांव है। गांव को नक्सलियों की शरणस्थली के लिए भी जाना जाता है। यहां के लोग खेती और पशु-पालन पर ही निर्भर हैं। गांव के लौंगी भुईयां की कहनी कुछ यूं है कि पहले वो मक्का और चना की खेती करते थे। पानी के अभाव में दूसरी फसलें करना संभव नहीं हो रहा था। कमाई सीमित थी, इसलिए उनका बेटा रोजगार की तलाश में शहर चला गया। गांव के दूसरे युवा भी पलायन कर गए।

लौंगी भुईयां बताते हैं कि बरसात का पानी पहाड़ों से बहकर नदी में चला जाता था। एक दिन जब मैं बकरी चरा रहा था, तब विचार आया कि यदि यह पानी गांव में आ जाए तो पलायन रुक सकता है। बस मैं नहर बनाने में जुट गया। आज केवल उनका परिवार नहीं, बल्कि तीन गांवों के 3000 लोग तालाब के पानी का इस्तेमाल कर रहे हैं।

लौंगी भुईयां के परिवारवाले कहते हैं कि वो अकेले फावड़ा लेकर निकल जाते थे। हम सब उन्हें रोकते थे, क्योंकि इस काम की कोई मजदूरी नहीं मिलती थी। सब उन्हें पागल कहते, लेकिन वो इस काम में लगे रहे। अब परिवार को उन पर गर्व होता है। लौंगी भुईयां बिहार के दूसरे दशरथ मांझी बन गए हैं। माउंटन मैन के नाम से प्रसिद्ध मांझी ने भी पहाड़ काटकर रास्ता बना दिया था, ताकि गांववालों को लंबी दूरी तय नहीं करनी पड़े।

उम्मीद है शेखावत से मिलेगी मदद

कामेगौड़ा की कहानी सामने आने पर केंद्रीय जलशक्ति मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत ने कहा था कि उनका मंत्रालय जल संचय के प्रत्येक कार्य को प्रोत्साहित करने को तत्पर है। हम जल संचय में लगे लोगों की मदद भी कर सकते हैं। उन्हें प्रोत्साहन और अन्य सहयोग प्रदान कर सकते हैं। निश्चित ही लौंगी भुईयां की प्रेरक कहानी केंद्रीय मंत्री शेखावत तक पहुंचेगी और वो उनकी मदद को आगे आएंगे।