रात 8.49 बजे सचिन पायलट ने एक वीडियो संदेश जारी कर उन्हें जन्मदिन की बधाई देने वालों का धन्यवाद दिया। वीडियो की खास बात यह थी कि पीछे जो फोटो लगी थी, उसमें उनके पिता राजेश पायलट और पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी एकसाथ नजर आ रहे हैं। ये और बात है कि रात तक न तो राहुल गांधी और न ही प्रियंका गांधी वाड्रा ने ट्वीट या अन्य सोशल मीडिया माध्यम से सचिन को जन्मदिन की बधाई थी। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने भी दोपहर 12 बजे बाद ही ट्वीट कर सचिन को जन्मदिन की शुभकामनाएं देने की औपचारिकताएं ही पूरी कीं। दोनों के बीच जो बर्फ जमी हुई है, वो सचिन के जन्मदिन पर भी नहीं पिघली।
सचिन ढाई महीने पहले तक राजस्थान के उप मुख्यमंत्री और प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष थे। गहलोत के खिलाफ मोर्चा खोलने से ये दोनों पद जरूर चले गए, लेकिन जिस तरह से सचिन के 43वें जन्मदिन पर उनके समर्थकों ने राज्य में शक्ति प्रदर्शन किया, उससे उनके विरोधियों की नींद जरूर उड़ गई होगी। कोरोना महामारी के बावजूद पूरे प्रदेश में लाइन लगाकर लोगों ने रक्तदान किया, जिनमें बड़ी संख्या में महिलाएं भी नजर आईँ। खास बात यह रही कि गहलोत गुट के अधिकांश नेता सचिन के जन्मदिन कार्यक्रमों से दूर रहे। सचिन जब दिल्ली में थे और नॉट रीचबल थे, तब इन्हीं नेताओं ने उनके खिलाफ जमकर जहर उगला था।
जब से सचिन वापस जयपुर आए हैं, तब तक मुख्यमंत्री गहलोत ने उनसे खासी दूरी बना ली है। जो खाई दोनों के बीच राजनीतिक स्टैंड-ऑफ के दौरान बनी थी, वो पिछले एक महीने में भी पटी नहीं है। दोनों के बीच एक बैठक जरूर हुई थी, लेकिन अब गहलोत लगातार सचिन का सामना करने से बचते नजर आ रहे हैं, क्योंकि यदि उनकी कुर्सी को खतरा है तो वो सचिन पायलट से ही है। जिस तरह से सचिन की वापसी के बाद प्रदेश प्रभारी अविनाश पांडे की विदाई हुई और वरिष्ठ नेताओं की तीन सदस्यीय कमेटी बनी, उससे स्पष्ट है कि सचिन का पलड़ा भारी है। संकेत साफ हैं, कांग्रेस आलाकमान मध्य प्रदेश की तरह राजस्थान की सत्ता नहीं जाने देना चाहता।
राजनीति के मंजे हुए खिलाड़ी और तीसरी बार मुख्यमंत्री बने अशोक गहलोत ने कुछ महीनों पहले सचिन की ओर इशारा करते हुए कहा था कि युवा नेताओं की दरअसल रगड़ाई नहीं हुई, उन्हें समय से पहले सबकुछ मिल गया, लेकिन वो खुद बिना रगड़ाई वाले सचिन के जाल में फंसते नजर आ रहे हैं। सचिन ने डेढ़ महीने मौन धारण कर गहलोत से वो सबकुछ कहलवा दिया, जिसके लिए वो जाने नहीं जाते। सचिन की असली जीत भी यही थी। सचिन मंत्रिमंडल में अपने गुट के विधायकों के लिए सम्मानजनक विभाग मांग रहे हैं तो गहलोत के आगे संकट यह है कि अपने गुट के विधायकों को भी उन्हें संतुष्ट करना है। यही कारण है कि वो लगातार मंत्रिमंडल विस्तार को टाल रहे हैं।
दिल्ली से वापसी के बाद सचिन और उनके गुट के विधायक लगातार शक्ति प्रदर्शन कर रहे हैं। सचिन का जन्मदिन भी उसी श्रृंखला में एक कदम था। राजस्थान की राजनीति में जो बिसात बिछ गई है, उसकी हर चाल में शह और मात छिपी हुई है। अब गहलोत गुट पलटवार करेगा या सचिन कोई नई चाल चलेंगे, यह देखने वाली बात होगी।
(विनोद पाठक)