विश्व आत्महत्या रोकथाम दिवस : रिश्तों को मिले सहारा तो यूं न थमे जिंदगी

समता शर्मा
आत्महत्या यानी किसी इंसान का खुद को ही खत्म कर लेना। आज के समय में हम देखते हैं कि हर इंसान सिर्फ खुद के विषय में सोचता है और अपना मतलब ही साधने में लगा रहता है। ऐसे में किसी इंसान का खुद को ही खत्म कर देना, बड़ा दर्दनाक सा लगता है। आखिर क्यों एक इंसान इतना बेबस हो जाता है कि वह खुद की जिंदगी से ही दूर भागने लगता है? यही नहीं, खुद ही अपने हाथों से अपनी जान ले लेता है। एक आदमी जो आत्महत्या करता है तो वह सिर्फ खुद नहीं मरता, बल्कि अपने आसपास कई लोगों को प्रभावित करता है। ऐसे में हम यदि अपने आसपास के लोगों से बातचीत करें तो उनमें जागरुकता पैदा कर सकते हैं। आत्महत्या की रोकथाम के लिए भी प्रयास कर सकते हैं। इसी उद्देश्य को लेकर हर वर्ष 10 सितंबर को मनाया जाता है विश्व आत्महत्या रोकथाम दिवस।

साल 2003 में इंटरनेशनल एसोसिएशन फॉर सुसाइड प्रिवेंशन ने विश्व स्वास्थ्य संगठन के साथ मिलकर विश्व आत्महत्या रोकथाम दिवस की शुरुआत की थी। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार हर सेकंड कोई ना कोई व्यक्ति आत्महत्या करने की कोशिश करता है। हर 40 सेकंड में कोई ना कोई व्यक्ति अपनी जान ले लेता है। इस तरह दुनियाभर में प्रतिवर्ष करीब 8 से 10 लाख लोग आत्महत्या कर लेते हैं। विशेषज्ञों की मानें तो आत्महत्या एक बहुत ही गंभीर समस्या है। आत्महत्या करने वाले कहीं न कहीं चाहता है कि कोई उसकी उस समय मदद करें, जब वह पूरी तरह से जीने की उम्मीद खो चुका होता है। उस समय किसी भी करीबी या प्रोफेशनल का हस्तक्षेप करना बहुत ही अधिक महत्वपूर्ण साबित हो सकता है।

विभिन्न रिपोर्ट से पता चला है कि हमारे देश में हर रोज 450 लोग आत्महत्या करते हैं, यानी हर घंटे में 18 लोग अपनी जान दे देते हैं। इनमें से अधिकतर 18 से 35 वर्ष के युवा हैं। देश में बढ़ते आत्महत्या के मामलों को देखते हुए केंद्र सरकार ने राष्ट्रीय आत्महत्या नीति की घोषणा की है। इन मामलों को कम करने और लोगों को जागरूक करने के लिए अब आत्महत्या रोकथाम सिलेबस पाठ्यक्रम में भी शामिल किया जाएगा, जिसके जरिए विद्यार्थी जानेंगे कि कैसे तनाव की स्थिति से बचा जा सकता है? आंकड़े बताते हैं कि दुनिया भर में होने वाली आत्महत्या में सबसे अधिक मामले भारत के होते हैं।

भारत में आत्महत्या करने के लिए जिन तरीकों का सबसे ज्यादा इस्तेमाल किया जाता है, उनमें जहर (अक्सर कीटनाशक), फांसी, जलना और डूबना शामिल है। आत्महत्या करने वालों में किशोरों की बढ़ती हुई संख्या को ध्यान में रखते हुए उन्हें मनोचिकित्सा दी जानी चाहिए। यही नहीं, घातक साधनों तक पहुंच को प्रतिबंधित करना और सामाजिक एकीकरण को बढ़ावा देना ऐसे विभिन्न तरीके हैं, जिनके द्वारा भारतीय किशोरों को आत्महत्याओं से बचाया जा सकता है। माता-पिता अपने बच्चों की किसी और बच्चे के साथ तुलना करते हैं। बार-बार उन्हें दूसरों से बेहतर करने के लिए दबाव डालते हैं तो ऐसी बातें बच्चों के बाल-मन पर गहरा प्रभाव डालती हैं। इसलिए बच्चों के साथ प्यार सें पेश आना चाहिए और उनके साथ तुलनात्मक व्यवहार नहीं करना चाहिए।

अगर किसी व्यक्ति ने इनमें से कोई भी लक्षण दिखाई देता है तो यह गंभीर हो सकता है ऐसे में हमें उसकी मदद करनी चाहिए और उसकी मनोस्थिति जानने की कोशिश करनी चाहिए। मरने या खुद को मारने की इच्छा के बारे में बात करना, खुद को मारने का रास्ता खोजना, निराशाजनक या बिना किसी उद्देश्य के जीने की बात करना, दूसरों पर बोझ होने की बात करना, शराब या ड्रग्स का उपयोग बढ़ाना, चिंतित, उत्तेजित या लापरवाह होना, बहुत कम या बहुत अधिक सोना, अलग-थलग महसूस करना, अत्यधिक गुस्सा करना या बदला लेने की बात करना, हद से ज्यादा मूड स्विंग्स होना आत्महत्या करने की सोच रहे व्यक्ति के लक्षण होते हैं। इसलिए कोई इंसान अपनी परेशानी के बारे में किसी अपने रिश्तेदार या दोस्त को बताता है और उसकी बातों से यह पता चलता है कि वह आत्महत्या करना चाहता है तो यह उस इंसान की जिम्मेदारी हो जाती है कि वह उस परिस्थिति को समझें और समय रहते अपने मित्र और रिश्तेदार को किसी मनोचिकित्सक की सलाह लेने को कहे।