आप से पूछा जाए कि देश की सबसे बड़ी चिंता क्या है? निश्चित ही आप कहेंगे बेरोजगारी (unemployment)। जयपुर (jaipur) की डॉ. प्रियंका कौशिक (dr. priyanka kaushik) ने इसी बेरोजगारी को दूर करने का संकल्प लिया है। पहले वो खुद नौकरी (job) करती थीं, लेकिन अब एक सफल HR कन्सल्टेंसी (consultancy) प्रुडेंट सोल्यूशन्स (Prudent Solutions) की डायरेक्टर हैं। वो कई घरों का सहारा बनी हैं। डॉ.प्रियंका कौशिक ने rajbulletin.com के साथ अपनी सक्सेस स्टोरी (success story) शेयर की। उन्हीं की जुबानी उनकी सफलता की कहानी।
शुरुआत से मेधावी छात्रा रहीं। हमेशा अव्वल आई। मैरिज (marriage) के बाद M.A संस्कृत (sanskrit) में अजमेर यूनिवर्सिटी (ajmer university) टॉप (top) कर गोल्ड मैडल हासिल किया। Net और P.hd के बाद कोचिंग संस्थान, दो निजी कॉलेजों में पढ़ाने के बाद राजस्थान (rajasthan) विश्वविद्यालय में संस्कृत विभाग में ज्वाइन किया।
मुझे सदा ही प्रयोगधर्मिता और चुनौतियों के साथ दो-दो हाथ करना लुभाता रहा है। मैंने कुछ नया करने की सोची। मुझे HR कन्सल्टेंसी का पता चला। मन में अनेक सवाल थे। क्या मैं किसी को रोजगार दिलाने में समर्थ हो सकती हूं? क्या बैंकिंग, जिससे मेरा परिचय मात्र रुपए निकालने और जमा कराने का है, उसमें मैं किसी को नौकरी दिलवा पाऊंगी? क्या संस्कृत की जानकार कन्सल्टेंसी समझ पाएगी? क्या बैंक के लिए उपयुक्त कैंडिडेट का चुनाव (selection) हो पाएगा? क्या मैं इस कार्य के साथ न्याय (justice) कर पाऊंगी? सबसे बड़ा सवाल तो ये था कि मेरी जमा-पूंजी इसमें बर्बाद तो नहीं हो जाएगी? मेरी नौकरी से मिल रहे फिक्स (fix) पैसे भी मिलना बंद हो जाएं और यहां पर सफलता भी नहीं मिले तो क्या होगा?
कुछ दिनों तक वेल विशर्स (well wisher) के साथ डिस्कशन (discussion) हुआ। फिर एक दिन मेरी बिटिया (daughter) श्रेयसी की एक बात ने मेरे विचार को दृढ़संकल्प में बदल दिया। उस नन्ही बच्ची ने मुझे रोते हुए कहा, मम्मा आप मुझे घर पर ही अच्छी लगती हो। मुझे छोड़कर कॉलेज मत जाया करो। बस, तब मैंने सारे सवालों को नजरंदाज कर रिस्क (risk) लेने की ठानी। घर से यह काम शुरू कर लिया।
बच्ची जब स्कूल जाती थी, तब तक आराम से काम करती थी। जब वो आ जाती, तब उसके साथ समय बिताकर उसकी परमिशन (permission) से काम करती। धीरे-धीरे आत्मविश्वास बढ़ने लगा। मैं पूरी मेहनत से इसे बढ़ाने में लग गई। जहां कुछ कठिनाई होती थी, उसे दूर करने में हस्बैंड (husband) आलोक कौशिक रहते ही थे। आलोक पेशे से इंजीनियर हैं। धीरे-धीरे हस्बैंड को यह काम इंटरेस्टिंग (interesting) लगने लगा। उन्होंने भी नौकरी से रिजाइन (resign) देकर प्रुडेंट सोल्यूशन्स को मेरे साथ ज्वाइन कर लिया।
मुझे अत्यंत हर्ष और गर्व हो रहा है कि मैं हजारों लोगों को नौकरी दिलवा चुकी हूं। कई परिवार ऐसे थे, जो आर्थिक तंगी से परेशानी का सामना कर रहे थे। नौकरी करने वाला एकमात्र सदस्य घर पर बेरोजगार बैठा था। मैंने और आलोक ने उस घर की सहायता (help) अपने सारे जरूरी काम छोड़कर की। आज हम जो छोटे से मुकाम को प्राप्त करके मन में संतोष पाल कर बैठे हैं, वो उन परिवारों के आशीर्वाद का सुपरिणाम है।
इस पवित्र कार्य ने मुझे आत्मसंतोष और आत्मगौरव से अभिसिंचित कर दिया है। अब मेरा मात्र एक परिवार नहीं, अपितु वसुधैव कुटुम्बकम की धारणा को जीने लगी हूं। अब संतोष है कि मैंने यह निर्णय लेकर अच्छा किया।
नए कार्य की अपनी कठिनाइयां और संघर्ष होते हैं, पर सीखने की ललक, हार ना मानने का अटल संकल्प और पवित्र भावना को लेकर आगे बढ़ें तो अनंत आशीर्वाद और शुभकामनाएं, हमको सफलता के द्वार तक पहुंचा देती हैं। अभी तो चलना प्रारंभ किया है। मेरे अपने आप से वादा है कि सबके घर में रोजगार हो।