परिवर्तन केवल सत्ता के बल पर नहीं, बल्कि समाज के बल पर होता है : निंबाराम

जयपुर। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के राजस्थान क्षेत्र प्रचारक निंबाराम ने कहा कि पंडित दीनदयाल उपाध्याय ने व्यष्टि से समष्टि तक का चिंतन दिया। यह भारत का प्राचीन विचार है, भारत की विरासत है, जिसे आज की स्थिति में हम युगानुकूल कहते हैं। भारत का विचार आधारित रचना बने ऐसा विजन 100 वर्ष पूर्व संघ के रूप में प्रारम्भ हुआ। उन्होंने कहा कि पंडित दीनदयाल के जीवन पढ़ेंगे तो हमें समझ आता है कि परिवर्तन केवल सत्ता के बल पर नहीं, बल्कि समाज के बल पर होता है। राजा वही होगा, जो हमारे बीच से जाएगा। इसलिए अब जैसा राजा वैसी प्रजा नहीं, बल्कि जैसी प्रजा वैसा राजा वाला समाज खड़ा करना होगा।
रविवार को दीनदयाल उपाध्याय की 56वीं पुण्यतिथि पर पंडित दीनदयाल उपाध्याय राष्ट्रीय स्मारक, धानक्या में “पंडित दीनदयाल उपाध्याय के जीवन दर्शन की प्रासंगिक” विषय पर आयोजित व्याख्यानमाला में निंबाराम ने कहा कि पंडित दीनदयाल उपाध्याय ने जिस विचार का नेतृत्व किया है, उसमें मूल भारत की प्राचीन संस्कृति और परम्परा को यूगानुकूल परिवर्तन के साथ विजयी बनाने का प्रण शामिल है। उन्होंने कहा कि पिछले जी20 की थीम वसुदैव कुटुम्बकम के रूप में भारत की मूल संस्कृति को सम्पूर्ण विश्व के सामने प्रतिपादित करने का कार्य हुआ है। उन्होंने समाज में सामाजिक समरसता व नागरिक अनुशासन को अपनाने, स्वदेशी वस्तुओं के साथ ही स्वत्व व पर्यावरण संरक्षण के प्रति भाव जाग्रत करने का आह्वान किया।
क्षेत्रीय प्रचारक ने कहा कि विश्वभर में अनेक विचारधाराएं चलती हैं, लेकिन भारत विश्वगुरु कहलाया। बीच के संघर्षकाल में हमारी रीतिया और अच्छाइयां रूढ़ियों में बदलीं, लेकिन भारत के उस प्राचीन विचार को पुनः स्थापित करने का आधार व्यक्ति है। देश में स्वाधीनता का संपूर्ण आंदोलन हमने स्व के आधार पर लड़ा। स्वाधीनता प्राप्त होने की बात 75 वर्षों का हिसाब-किताब भी हमारे पास होना चाहिए। देश को आगे बढ़ाने की हमारी क्या योजना हो? इसके लिए पंडित दीनदयाल जी के विचारों को आत्मसात करना है। शासन चलाने वाले सभी श्रेष्ठ जनों ने इसके लिए एक अभियान हमारे समक्ष रखा और वह है अमृतकाल। उन्होंने कहा कि पंडित दीनदयाल जी का अंत्योदय विचार राजस्थान में दिखता है। पंडित दीनदयाल उपाध्याय जीवन और अनेक ऐसे महापुरुषों के विचार लोगों तक पहुंचे, इसके लिए एक तंत्र का निर्माण करना होगा। जब हम एकता और एकात्मता की बात करते हैं तो सीमाओं की सुरक्षा के साथ-साथ देश की आंतरिक सुरक्षा पर भी ध्यान देना होगा।
निंबाराम ने कहा कि संविधान हमारे लिए सर्वोपरि है। हम अक्सर संविधान में दिए गए अधिकारों की तो बात करते हैं, लेकिन उसमें बताए गए कर्तव्य की भी नागरिकों के बीच चर्चा होनी चाहिए। हमें सोचना चाहिए कि आज जो परिवर्तन का भव्य वातावरण देश में बना है, उसमें हमारी भूमिका क्या हो? आज रामलला के मंदिर की भव्य प्राण प्रतिष्ठा हुई, उससे हम सब में स्वाभिमान जगा, लेकिन परिवर्तन का यह क्रम निरंतर चलना चाहिए। पंडित दीनदयाल उपाध्याय के सामंजस्य और समन्वय के भाव को लेकर हमें चलना होगा।
उन्होंने कहा कि भारत का चरित्र क्या होना चाहिए? इसका अभी-अभी एक उदाहरण हम सब ने जी20 में देखा। जहां विभिन्न देशों के राष्ट्राध्यक्षों का स्वागत किया, वहां पीछे नालंदा विश्वविद्यालय का चित्र लगा था। वहां योजना बनाने वालों ने यह नहीं सोचा कि खंडहर का चित्र दिखाने से बुरा लगेगा, बल्कि विरासत के प्रति गर्व के भाव को दिखाया गया। हमारे पूर्वज हमें क्या देकर गए? इसका एक उदाहरण दिया।
उन्होंने पर्यावरण संकट का विषय अभी संपूर्ण विश्व के लिए परेशानी का विषय बना हुआ है, लेकिन जो लोग हमें कहते थे कि तुम पेड़ों पर नदियों को पूजते हो, आज हमारी दूर दृष्टि और उसके पीछे के वैज्ञानिक कारण दुनिया को दिख रहे हैं। पौधारोपण, प्लास्टिक मुक्त भारत, जल संरक्षण इसको लेकर हमें कदम बढ़ाने होंगे। इसके साथ ही उन्होंने स्व की बात करते हुए वह पर्यावरण जागरुकता के ऊपर एक प्रेरक प्रसंग सुनाते हुए अपनी बात को विराम दिया।
कार्यक्रम में उप राष्ट्रपति जगदीप धनखड़, मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा, उप मुख्यमंत्री प्रेमचंद बैरवा, कैबिनेट मंत्री राज्यवर्धन सिंह राठौड़, उद्योगपति राजेश गौतम, पंडित दीनदयाल उपाध्याय स्मृति समारोह समिति के अध्यक्ष मोहनलाल छीपा, सचिव प्रताप भानू, राजस्थान धरोहर संरक्षण एवं प्रोन्नति प्राधिकरण ओंकार सिंह लखावत समेत अनेक गणमान्य नागरिक उपस्थिति थे।