United Nation में वैश्विक नेताओं के सामने गूंजी जयपुर के ‘किंशु’ की गूंज

दुन‍िया में सबसे ताकतवर मुल्‍क का दर्जा रखने वाले अमेरिका के न्‍यूयॉर्क शहर की यह शाम कुछ अलग थी। इस शाम में भारत के एक पूर्व बाल मजदूर किंशु कुमार ने वर्ल्‍ड लीडर्स के समक्ष बाल मजदूरों की पीड़ा, बालश्रम और बाल शोषण को लेकर अपनी बात रखी।

यह मौका था संयुक्‍त राष्‍ट्र की ‘ट्रांसफॉर्मिंग एजुकेशन समिट’ का। किंशु ने कहा,  ‘बालश्रम और बाल शोषण को खत्‍म करने के लिए जरूरी है कि बच्‍चों को शिक्षित किया जाए और उन्‍हें समान रूप से आगे बढ़ने के अवसर प्रदान किए जाएं।’ किंशु ने कहा कि बच्‍चों के उज्‍जवल भविष्‍य के लिए वैश्विक नेताओं को आर्थिक रूप से अधिक जतन करने चाहिए।

इसके समानांतर आयोजित हुई ‘लॉरिएट्स एंड लीडर्स फॉर चिल्‍ड्रेन समिट’ के चौथे संस्‍करण में नोबेल विजेताओं और वैश्विक नेताओं को संबोधित करते हुए किंशु ने बालश्रम,  बाल शोषण और बच्‍चों की शिक्षा के लिए बात की। उसने कहा,  ‘बच्‍चों के खुशहाल भविष्‍य के लिए शिक्षा सबसे अहम कारक है। इसके जरिए ही वे बालश्रम और बाल शोषण जैसी बुराई से बच सकते हैं।’  इस मौके पर नोबेल शांति पुरस्‍कार से सम्‍मानित लीमा जीबोवी, स्‍वीडन के पूर्व प्रधानमंत्री स्‍टीफन लोवेन और जानी-मानी बाल अधिकार कार्यकर्ता केरी कैनेडी समेत कई वैश्विक हस्तियां मौजूद थीं।

‘लॉरिएट्स एंड लीडर्स फॉर चिल्‍ड्रेन’ दुनियाभर में अपनी तरह का इकलौता मंच है, जिसमें नोबेल विजेता और वैश्विक नेता बच्‍चों के मुद्दों को लेकर जुटते हैं और भविष्‍य की कार्ययोजना तय करते हैं। यह मंच नोबेल शांति पुरस्‍कार से सम्‍मानित कैलाश सत्‍यार्थी की देन है। इसका मकसद एक ऐसी दुनिया का निर्माण करना है, जिसमें सभी बच्‍चे सुरक्षित रहें, आजाद रहें, स्‍वस्‍थ रहें और उन्‍हें शिक्षा मिले।

किंशु बचपन में छह साल की उम्र में उत्‍तर प्रदेश के मिर्जापुर जिले में एक मोटर गैराज में मजदूरी करता था। परिवार की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी और ऐसे में किंशु को स्‍कूल छोड़कर मजदूरी करनी पड़ी ताकि परिवार की आमदनी में कुछ इजाफा हो सके। एक बच्‍चे के लिए यह बेहद दर्दनाक परिस्थिति थी कि खेलने-कूदने की उम्र में उसे रोजी-रोटी कमाने के फेर में पड़ना पड़ा।

किंशु की जिंदगी में उस समय एक ऐसा मोड़ आया, जब उसकी जिंदगी पूरी तरह से बदल गई। दरअसल, उसके ड्राइवर पिता ‘बचपन बचाओ आंदोलन’ के द्वारा निकाले गए ‘एजुकेशन मार्च’ के संपर्क में आए। ‘बचपन बचाओ आंदोलन’ की स्‍थापना नोबेल शांति पुरस्‍कार से सम्‍मानित कैलाश सत्‍यार्थी ने की थी। आंदोलन के कार्यकर्ताओं के संपर्क का किंशु के पिता पर सकारात्‍मक असर पड़ा और उन्‍होंने किंशु से मजदूरी का काम छुड़वा दिया। इसके बाद किंशु राजस्‍थान के जयपुर (विराट नगर) स्थित बाल आश्रम ट्रस्‍ट लाया गया। यह ऐसा आश्रम है जिसमें बालश्रम, ट्रैफिकिंग,  बाल शोषण के शिकार बच्‍चों को रखा जाता है। यहां उनके पढ़ने-लिखने, रहने व खेलने-कूदने की उचित व्‍यवस्‍था होती है। साथ ही वोकेशनल ट्रेनिंग भी होती है, ताकि बच्‍चे अपने भविष्‍य को संवार सकें। बाल आश्रम ट्रस्‍ट की स्‍थापना कैलाश सत्‍यार्थी और उनकी पत्‍नी सुमेधा कैलाश ने की थी।

हाईस्‍कूल की परीक्षा अच्‍छे नंबरों से पास करने के बाद किंशु ने आगे की पढ़ाई पूरी की। इसके बाद से ही किंशु बाल आश्रम ट्रस्‍ट में प्रोजेक्‍ट ऑफिसर के तौर पर काम कर रहा है। किंशु बच्‍चों के अधिकारों को लेकर काम कर रहा है और बालश्रम को पूरी तरह से खत्‍म करने के लिए प्रतिबद्ध है। उसके यही कार्य उसे बच्‍चों के अधिकार कार्यकर्ता के रूप में एक वैश्विक पहचान दिला चुके हैं। अपनी अभी तक की जीवन यात्रा में किंशु अमेरिका समेत तमाम देशों में वैश्विक मंचों से बच्‍चों के अधिकार की आवाज उठा चुका है। किंशु का कहना है, ‘मेरे जीवन का लक्ष्‍य है कि पूरी दुनिया से बालश्रम, बाल शोषण, बाल यौन शोषण और बाल विवाह जैसी बुराइयों को हमेशा के लिए खत्‍म किया जाए।’ किंशु ने पिछले दिनों नोबेल शांति पुरस्‍कार से सम्‍मानित कैलाश सत्‍यार्थी के उस ऐलान का भी समर्थन किया है, जिसमें उन्‍होंने ‘बाल विवाह मुक्‍त भारत’ नाम से आंदोलन शुरू करने की बात कही है।