vasundhara raje का एक निर्णय जिसे ashok gehlot ने बदला पर दूरगामी सोच का असर नहीं बदल सके

मनीष गोधा

राजस्थान (rajasthan) में भारतीय जनता पार्टी (bjp) की सरकार के समय किए गए एक निर्णय ने यहां पंचायतीराज और शहरी स्थानीय निकायों में जनप्रतिनिधियों के शिक्षा के स्तर को बहुत हद तक सुधार दिया है। स्थिति यह है कि पिछले वर्ष सितंबर से दिसंबर तक हुए पंचायतीराज और स्थानीय निकाय चुनावों में चुने गए 21 जिला प्रमुखों, 222 प्रधानों और 50 स्थानीय निकायों अध्यक्षों में से सिर्फ दो प्रधान निरक्षर हैं। जिला प्रमुखों और शहरी स्थानीय निकाय अध्यक्षों में कोई भी निरक्षर नहीं है।

दिलचस्प बात यह है कि इस दूरगामी सोच वाले निर्णय का विरोध उन जनसंगठनों ने किया था, जो खुद को प्रगतिशील और आधुनिक बताते हैं और कांग्रेस ने भी इनका साथ दिया था। यही नहीं, अशोक गहलोत (ashok gehlot) नेतृत्व में कांग्रेस (congress) ने तो इस बार सत्ता में आते ही उस समय लागू की गई शैक्षणिक योग्यता की अनिवार्यता को हटा भी दिया। इसके बावजूद निकाय और पंचायतराज प्रमुखों के चुनाव की यह सुखद तस्वीर सामने आई है।

राजस्थान में भाजपा सरकार के पिछले कार्यकाल (दिसंबर 2013 से दिसंबर 2018) में 2014-2015 में पंचायतीराज और शहरी स्थानीय निकायों के चुनाव हुए थे। उस समय तत्कालीन मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे (vasundhara raje) ने दूरगामी सोच के साथ एक निर्णय किया, जिसके तहत पंचायतीराज और शहरी स्थानीय निकायों में चुनाव लड़ने के लिए न्यूनतम शैक्षणिक योग्यता का प्रावधान किया गया था।

इससे पहले, इन चुनावों में शैक्षणिक योग्यता की कोई अनिवार्यता नहीं थी और बड़ी संख्या में निरक्षर व्यक्ति सरपंच, प्रधान, प्रमुख और स्थानीय निकाय अध्यक्ष बनते थे। गांवों में ग्रामीण विकास और शहरों में शहरी विकास की करोड़ों रुपए की योजनाएं आती हैं, लेकिन संस्था प्रमुखों की निरक्षरता के कारण न सिर्फ कई बार वे खुद फंसते थे, बल्कि जनता को भी पूरा फायदा नहीं दिला पाते थे। ऐसे में भाजपा सरकार के समय किया गया निर्णय काफी महत्वपूर्ण था और 21वीं सदी की सोच के अनुरूप था।

सरकार के इस निर्णय का बड़ा प्रभाव पड़ा और पहली बार पंचायतों व स्थानीय निकायों में बड़ी संख्या में युवाओं को प्रवेश मिला। शैक्षणिक योग्यता की अनिवार्यता के चलते निरक्षर बुजुर्गों को दूर होना पड़ा। हालांकि, ज्यादातर ने अपनी विरासत अपने बेटे-बहू या बेटियों को सौंपी, लेकिन फिर भी युवा अच्छी संख्या में जनप्रतिनिधि बने और इसका राजनीतिक लाभ भी भाजपा को मिला। ग्रामीण क्षेत्रों में कमजोर मानी जाने वाली भाजपा ने पहली बार प्रधान और जिला प्रमुख चुनाव में बड़ी जीत हासिल की।

“प्रगतिशील“ संगठनों और कांग्रेस ने किया विरोध

एक आधुनिक सोच वाले इस निर्णय का कड़ा विरोध उन संगठनों की ओर से सामने आया, जो खुद को प्रगतिशील और आधुनिक बताते हैं। इन संगठनों का तर्क था कि निचले स्तर पर शैक्षणिक योग्यता की अनिवार्यता लागू करने से लोगों के चुनाव लड़ने का मूल अधिकार प्रभावित होगा और निचले स्तर पर इसे लागू करने से पहले संसद और विधानसभा के चुनाव में इसे लागू किया जाना चाहिए।

लेकिन, यह संगठन इस बात को नजरअंदाज कर गए कि विधायक और सांसद से ज्यादा निर्णय प्रधान, प्रमुखों और सरपंचों को लेने होते हैं। ऐसे में पढ़ा-लिखा जनप्रतिनिधि ज्यादा बेहतर ढंग से गांव और नगरपालिका का विकास कर सकता है। ये संगठन सरकार के निर्णय के खिलाफ हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट तक गए, लेकिन इन्हें राहत नहीं मिली और यह निर्णय अंततः लागू हो गया।

कांग्रेस ने भी किया विरोध

उस समय कांग्रेस विपक्ष में थी और सरकार के इस निर्णय का विरोध उसने भी किया। कांग्रेस का विरोध राजनीतिक ज्यादा था, क्योंकि उसे इस बात का अंदाजा था कि युवाओं में भाजापा और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता बहुत ज्यादा है। ऐसे में युवा ही चुनाव मैदान में उतरते हैं तो उन्हें युवा मतदाताओं का अच्छा समर्थन मिलेगा और ऐसा हुआ भी। उसी समय कांग्रेस ने यह घोषणा की थी जब वह सत्ता में आएगी तो शैक्षणिक योग्यता की अनिवार्यता का यह प्रावधान हटा देगी।

कांग्रेस ने सत्ता में आने के बाद यह काम किया भी और सरकार बनने के बाद शुरुआती समय में ही इस अनिवार्यता को हटा दिया, लेकिन सरकार के इस निर्णय का ज्यादा प्रभाव नजर नहीं आया। इस बार भी बड़ी संख्या में युवा चुनाव मैदान में उतरे और जीत कर भी आए। राजनीतिक रूप से भी भाजपा को ही बढ़त मिली और इतिहास में पहली बार विपक्ष में रहते हुए भाजपा ने पंचायतीराज चुनाव में कांग्रेस के मुकाबले ज्यादा प्रधान और जिला प्रमुख बनाने में सफलता प्राप्त की।

यूं बदली तस्वीर

इस बार चुने गए 60-70 प्रतिशत पार्षदों, जिला प्रमुखों, प्रधानों और निकाय अध्यक्षों की औसत उम्र 50 वर्ष से कम है।

प्रधानों में आठ प्रधान तो ऐसे हैं, जो 21 और 22 वर्ष के हैं।

इस बार चुने गए 222 पंचायत समितियों के प्रधानों में सिर्फ 2 निरक्षर हैं और 61 साक्षर हैं।

71 यानी 31 प्रतिशत प्रधान ग्रेजुएट या पोस्ट ग्रेजुएट हैं। इनमें से एक तो नीमकाथाना के प्रधान सुवालाल एम.बी.बी.एस हैं तो खेतड़ी की प्रधान मनीषा एम.ए, एलएलएम है। प्रधानों में बी.एड और लॉ की डिग्री वाले और भी कई हैं।

21 जिला प्रमुखों में निरक्षर एक भी नहीं है। चार साक्षर हैं, वहीं 11 ग्रेजुएट या पोस्ट ग्रेजुएट हैं। इनमें भी एक चित्तौड़गढ़ के जिला प्रमुख सुरेश पी.एचडी हैं। सीकर की जिला प्रमुख गायत्री कंवर बी.बी.एम और एम.कॉम डिग्रीधारक हैं।

50 शहरी स्थानीय निकाय अध्यक्षों में भी निरक्षर कोई नहीं है। दस साक्षर हैं, वहीं 14 ग्रेजुएट और पोस्ट ग्रेजुएट हैं। इनमें भी राजाखेड़ा के निकाय अध्यक्ष वीरेंद्र सिंह एम.ए, बी.एड हैं।