लंदन. जब पूरी दुनिया युद्ध, संघर्ष और सत्ता के लोभ में उलझी हुई है, ऐसे समय में प्रयाग पुत्र राकेश शुक्ल ने ऑक्सफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी यूनियन में अपने भाषण में महाकुंभ की महत्ता को विस्तार से समझाया। उन्होंने कहा कि महाकुंभ इंसानियत और आशा की उस रौशनी को जीवित रखता है, जो इस विश्वास के साथ जलती रहती है कि विश्व में एकता का दीपक कभी बुझने न पाए। जब देश अपने-अपने स्वार्थ और विस्तार की होड़ में लगे हों, तब महाकुंभ पूरे मानव समाज को जोड़ने का कार्य करता है और उनके दिलों में शांति और आशा का संचार करता है।
शुक्ल का यह व्याख्यान इंडियन ग्लोबल फाउंडेशन द्वारा आयोजित किया गया था, जहां उन्होंने बताया कि हर 12 वर्षों में आयोजित होने वाला महाकुंभ करोड़ों श्रद्धालुओं को एक साथ जोड़ता है। यह एक ऐसा आयोजन है, जहां न भाषा का भेद होता है, न वेशभूषा का। वहां अमीर-गरीब, वृद्ध-युवा सभी एक समान त्रिवेणी संगम की पावन धारा में स्नान कर आत्मिक शांति का अनुभव करते हैं। एक पल का स्नान जीवनभर की शांति का एहसास कराता है। शुक्ल के अनुसार महाकुंभ 2025 आस्था और आधुनिकता का एक सजीव संगम बन गया, जहां AI आधारित ‘कुंभ सहायक’ ने मार्गदर्शन किया, वही नेत्र कुंभ ने लाखों आंखों में रौशनी भरी। सुरक्षित और सुव्यवस्थित महाकुंभ ने सार्वजनिक आयोजन प्रबंधन का एक नया वैश्विक मानक स्थापित किया। शुक्ल ने कहा कि मानव जीवन को अमरत्व की ओर ले जाना है और शाश्वत सत्य के सनातन धर्म के द्वारा ही वैश्विक शांति का मार्ग प्रशस्त किया जा सकता है।
शुक्ल के शब्दों ने वहां उपस्थित हर व्यक्ति को यह महसूस कराया कि महाकुंभ केवल एक धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि “वसुधैव कुटुंबकम” की सजीव भावना है- एक ऐसा दीपक, जो आज के अंधकारमय समय में भी संपूर्ण विश्व को प्रकाशित कर सकता है। सनातन के सूर्य का आलोक और उजास पूरी दुनिया में विकरित हो रहा है। ये सनातन के सूर्य का पुनः पुनरोदय है और इस उदय को हमारी नयी पीढ़ी पूरी दुनिया में लेकर आगे जाएगी।
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महाकुंभ : जहां न भाषा का भेद होता है, न वेशभूषा का

ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी में प्रयाग पुत्र राकेश शुक्ल।
