Modi सरकार के 3 कृषि कानूनों पर गर्म बहस के बीच यह भी जान लें

प्रतीकात्मक फोटो।

नरेंद्र मोदी (narendra modi) सरकार ने कृषि क्षेत्र (agriculture) में सुधार के लिए तीन कानून (3 laws) कृषक उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सरलीकरण) विधेयक, 2020, कृषि (सशक्तीकरण और संरक्षण) कीमत अश्वासन और कृषि सेवा करार विधेयक, 2020 और आवश्यक वस्तु संशोधन विधेयक, 2020 पारित किए। देश में इन कानूनों के पक्ष और विपक्ष में चर्चा गर्म है। हमने समाचार पत्रों, राजनीतिक और इकॉनोमिक फोरम्स पर चल रहे विमर्श का निचोड़ निकालने की कोशिश की।

कानून के पक्ष में

1. किसान केवल एक खरीदार तक सीमित नहीं रहेगा (यानी सरकार, मंडी और एग्रीकल्चर प्रोड्यूस मार्केट कमेटियां)। वो अपनी उपज को कहीं भी (किसी भी राज्य में) में बेच पाएगा, ताकि उसे उचित मूल्य मिल सके और उसकी इनकम में बढ़ोतरी हो सके।

2. व्यापक स्तर पर अनुबंध कृषि (Contract farming) से खेती में तकनीक के ट्रांसफर, आधुनिकीकरण (modernization) और विविधता (diversification) आएगी।

3. कृषि सेक्टर के एकीकरण (integration) से अर्थव्यवस्था (economy) को मजबूती मिलेगी।

4. यदि बाजार में अस्थिरता पैदा होगी तो सरकार हस्तक्षेप कर सकेगी।

 कानूनों के विपक्ष में

1. बड़े निजी ऑपरेटर (Large private operators) बाजार में एकाधिकार स्थापित कर कृषि उत्पादों की कीमतों को कंट्रोल कर सकते हैं। सरकारी नियंत्रण खत्म होने से आगामी कुछ वर्षों में न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) की व्यवस्था समाप्त हो जाएगी। जब उत्पाद की कीमत निर्धारित नहीं होगी तो किसानों को बड़े निजी ऑपरेटरों के रहमो-करम पर रहना पड़ेगा।     

2. निजी ऑपरेटर बाजार की डिमांड के अनुसार फसलों की खेती पर जोर देंगे। इसे फसल चक्र गड़बड़ा सकता है। यह क्षेत्र की एग्रो-क्लाइमेटिक कंडिशन (agro-climatic conditions) के लिए नुकसानदायक साबित होगा। नतीजा कम पैदावार, अधिक लागत और किसानों पर कर्ज के बोझ के रूप में सामने आ सकता है।

3. बाजार मांग के अनुसार भूमि समेकन (land-consolidation) के लिए विवश कर सकता है (वर्तमान में खेत अपेक्षाकृत छोटे आकार के हैं), यह आर्थिक परिप्रेक्ष्य में तो सही है, लेकिन इससे किसानों के भूमिहीन होने का खतरा बढ़ सकता है।

4. तीसरा कानून, आवश्यक वस्तु संशोधन विधेयक, 2020, तभी लागू हो पाएगा, जब बाजार बहुत अस्थिर होगा, खाद्यान्न संकट और भूखमरी के हालात बनेंगे।

सुलगते सवाल

क्या किसान अपनी फसल को अपनी मर्जी से कहीं भी ले जा सकने में सक्षम होगा?

क्या छोटे किसानों को यह आजादी मिलेगी?

अनुबंध कृषि के लिए निवेश कहां से आएगा, क्योंकि बैंक कर्ज देने की ऐसी स्थिति में बिल्कुल नहीं हैं?

क्या अनुबंध पर खेती पूरे देश में संभव होगी? विशेष कर राजस्थान, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र जैसे अर्द्ध शुष्क राज्यों में या यूपी, बिहार जैसे छोटे आकार के खेत वाले राज्यों में?

कृषि के बड़े व्यापारी कौन होंगे? उनका बिजनेस मॉडल क्या होगा?

क्या वो देशभर में कलेक्शन सेंटर खोलेंगे?

आदिवासी क्षेत्रों का क्या होगा?

अर्द्ध शुष्क क्षेत्रों (semi-arid areas) में क्या निवेश की संभावना होगी और खाद्यान्न व अन्य वस्तुएं को स्टोर करने के लिए आधारभूत ढांचा तैयार होगा?

अंतिम सवाल खेतीहर मजदूरों और श्रमिकों का क्या होगा?

(डॉ. मनीष तिवारी, डायरेक्टर, शिवचरण माथुर सोशल पॉलिसी रिसर्च इंस्टीट्यूट)