आखिर क्यों उड़ी हुई है पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री mamata banerjee की रातों की नींद

पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी। फाइल फोटो

राजेंद्र राज, वरिष्ठ पत्रकार

पश्चिम बंगाल (west Bengal) की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी (cm mamata banerjee) मीडिया में रोजाना बनती दल-बदल की सुर्ख़ियों से परेशान हैं। इन सुर्खियां में पार्टी का कोई मौजूदा या पूर्व पदाधिकारी, विधायक या जनप्रतिनिधि पार्टी छोड़कर भारतीय जनता पार्टी (bjp) में शामिल की खबरें होती हैं। हाल में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह (home minister amit shah) के दो दिवसीय दौरे में जिस प्रकार तृणमूल कांग्रेस (tmc) के कद्दावर नेता भाजपा में शामिल हुए हैं, उससे ममता बनर्जी की रातों की नींद उड़ना होना स्वभाविक है।

ऐसी क्या वजह है कि तृणमूल कांग्रेस के अनेक कद्दावर नेता लगातार ममता का साथ छोड़ते जा रहे हैं। कल तक  पार्टी का चेहरा रहे इन नेताओं को ममता बनर्जी अपने साथ रखने में असमर्थ हैं। पार्टी छोड़ने वाले सभी नेता पार्टी में बढ़ते भ्रष्टाचार और भाई-भतीजावाद के आरोप लगा रहे हैं। भ्रष्टाचार ने तो पश्चिम बंगाल में कम्युनिस्ट पार्टी की सरकार के समय ही शिष्टाचार का चोला पहन लिया था। लेकिन, भाई-भतीजेवाद का आरोप ममता बनर्जी पर भारी पड़ रहा है। भतीजे को बढ़ावा देने की कोशिशों के चलते ही संभवत अनेक नेता ममता बनर्जी का साथ छोड़ने को मजबूर हो रहे हैं या पश्चिम बंगाल में खिलता हुआ कमल इन नेताओं को नजर आ रहा है या ममता की तुष्टीकरण की नीतियों ने उनकी राजनीतिक जमीन छीन ली है।

ये ऐसे सवाल हैं, जिनके जवाब भविष्य के गर्भ में है। लेकिन, एक बात जो बहुत साफ नजर आ रही है कि कद्दावर नेताओं के तृणमूल कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल होने से पूरे प्रदेश में भगवा माहौल बन रहा है। ममता से सहानुभूति रखने वाले राजनीतिक प्रेक्षक भी अब ममता के जहाज में छेद होना माना रहे हैं। विधानसभा चुनाव नजदीक आते-आते यह छेद और गहरा होगा, इसकी संभावनाएं बढ़ती जा रही है। पिछले ढाई साल का राजनीतिक ग्राफ तो स्पष्ट बता रहा है कि ममता बनर्जी के हाथ से सत्ता फिसलती जा रही है।

मुकुल राय ने की शुरुआत

वर्ष 2018 के लोकसभा चुनाव से पहले ममता के खासमखास रहे मुकुल राय ने तृणमूल कांग्रेस का साथ छोड़ दिया था। तब उन पर भ्रष्टाचार में फंसे होने पर सीबीआई के शिकंजे से बचाव के लिए भाजपा में शामिल होने का ममता बनर्जी ने आरोप लगा था। राय के बाद से भाजपा में तृणमूल कांग्रेस के नेताओं के शामिल होने का जो सिलसिला शुरू हुआ, वह अब सैलाब का रूप लेता जा रहा है। ऐसा दृश्य अमित शाह की रैली के दौरान देखने को मिला, जब ममता बनर्जी के दाएं हाथ कहे जाने वाले शुभेंदु अधिकारी ने शाह के चरण स्पर्श कर पार्टी में शामिल होने पर उनका आशीर्वाद लिया।

प्रदेश में तृणमूल कांग्रेस की जड़ें कमजोर होती जा रही हैं, इसका बड़ा प्रमाण लोकसभा चुनाव के नतीजों में देखने को मिला। वर्ष 2018 के लोकसभा चुनाव में प्रदेश की 42 में से 18 सीटें जीतकर भाजपा ने राजनीतिक पर्यवेक्षकों को चौका दिया था। इन नतीजों ने ममता बनर्जी को झकझोर कर रख दिया था। तब से ममता बनर्जी हर वह कार्य कर रही है, जिससे भाजपा कार्यकर्ताओं को आतंकित किया जा सके।

भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा की रैली पर जिस तरह का जानलेवा हमला हुआ, उससे तो ममता बनर्जी की सरकार को बर्खास्त किए जाने की संभावनाएं प्रबल हो गई थीं। प्रदेश में भाजपा कार्यकर्ताओं की लगातार हत्याएं हो रही हैं। कानून-व्यवस्था लगातार बिगड़ती जा रही है। इससे कायस लगाया जा रहा है कि ममता बनर्जी स्वयं चाहती है कि केंद्र ऐसी कार्रवाई करें, ताकि उन्हें भाजपा पर सत्ता हथियाने का आरोप लगाने का मौका मिल सके। जनता से सहानुभूति प्राप्त हो जाए। लेकिन, भाजपा ममता बनर्जी की इस चाल को समझ रही है। मौका नहीं देना चाहती, जिससे वे जनता की नजर में हीरो बन सकें।

इस हमले में सुरक्षित कार होने के कारण नड्डा तो सुरक्षित निकल गए। लेकिन, ममता बनर्जी की आंख की किरकिरी बने पार्टी के बंगाल प्रभारी कैलाश विजयवर्गीय की कार में पत्थर पड़े, जिससे उन्हें गंभीर चोटें आईं। इस घटना के बाद केंद्र सरकार ने विजयवर्गीय को भी सुरक्षित कार के साथ जेड प्लस स्तर की सुरक्षा उपलब्ध करा दी गई।

हिंसा का इतिहास

नड्डा पर हुए हमले पर ममता बनर्जी का जो बयान आया, वह लोकतंत्र के लिए बहुत ही शर्मनाक है। लोकतंत्र में  सभाएं करना, रैलिया निकालना, धरना-प्रदर्शन, आंदोलन करना, ये सब स्वभाविक है। ममता सरकार ने देश की सत्ताधारी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष की सुरक्षा का इंतजाम करना तो दूर उन्हीं की पार्टी के कार्यकर्ताओं ने हमला किया। हमले को गंभीरता से लेते हुए केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने राज्यपाल से राज्य की कानून व्यवस्था पर रिपोर्ट मांगी है। सुरक्षा में लगे भारतीय पुलिस सेवा के तीन अधिकारियों को दिल्ली तलब किया है। अधिकारियों को भेजने को लेकर राजनीति हो रही है। सुप्रीम कोर्ट के निर्देशानुसार इन अधिकारियों को दिल्ली जाना ही होगा। ऐसी स्थिति में ममता बनर्जी को फिर अपनी किरकिरी का सामना करना होगा।

सत्ता में आने से पहले ममता बनर्जी भी कम्युनिस्ट सरकार के खिलाफ इसी तरह के आयोजन करती रही हैं। इतिहास बताता है कि उनके ऐसे आयोजनों पर कम्युनिस्ट पार्टी के तथाकथित कार्यकर्ता भी हिंसक हमले करते रहे हैं। देखा जाए तो पश्चिम बंगाल में हिंसा की राजनीति का इतिहास बहुत पुराना है। वर्ष 1977 में मार्क्सवादियों के सत्ता में आते ही हिंसा की राजनीति की शुरू हो गई थी। यह वह समय था, जब जिलों में माकपा नेताओं ने पूर्ण नियंत्रण स्थापित कर लिया था। भूमि सुधार और पंचायती राज के नाम पर जिले का प्रशासन अधिकारियों से निकल कर माकपा कार्यालय और काडर के हाथ में आ गया था।

वर्ष  1982 में 17 आनंदमार्गियों को जिंदा जला दिया गया था। 2007 में नंदीग्राम की हिंसा मार्क्सवादियों के कफन में आखिरी कील साबित हुई। वर्ष 2011 के पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव में वाम मोर्चा को हराते हुए तृणमूल कांग्रेस ने पूर्ण बहुमत हासिल किया। हालांकि, इस चुनाव से पहले तृणमूल कांग्रेस ने भी हिंसा की राजनीति शुरू कर दी थी। चुनावों से पहले तृणमूल कांग्रेस के करीब 100 कार्यकर्ता मारे गए थे। चुनाव जीतने के बाद ममता बनर्जी ने वादा किया था कि हम बदलाव की राजनीति करेंगे, प्रतिशोध की नहीं। लेकिन, पिछले 9 साल में तृणमूल कांग्रेस के काडर ने वही तरीका अपनाया, जिस कारण कम्युनिस्ट सत्ता से बेदखल हुए थे।

पिछले 5 साल में भाजपा का कमल प्रदेश में खिलने लगा है। इससे तृणमूल कांग्रेस का निशाना भाजपा कार्यकर्ता बन रहे हैं। वर्ष 2018 के पंचायत चुनाव में भाजपा का आधार बढ़ने के बाद से भाजपा के 130 कार्यकर्ताओं को मौत के घाट उतारा जा चुका है। पंचायत चुनाव वाले दिन भी 10 कार्यकर्ताओं की हत्या की गई। अब जबकि विधानसभा चुनाव होने में मात्र 6 महीने शेष हैं तो हिंसा की राजनीति और तेज हो गई है। हालत यह है कि हिंसक घटनाओं में भाजपा कार्यकर्ताओं को मारकर पेड़ पर लटका दिया जाता है। पुलिस इन्हें आत्महत्या बताकर केस रफा-दफा कर देती है।

चुनावी चौसर में ओवैसी

अगले साल मई में पश्चिम बंगाल में विधानसभा चुनाव होने हैं। राज्य में विधानसभा की 294 सीटें हैं। भाजपा 200 सीटें जीतने का दावा कर रही है। इस दावे के पीछे लोकसभा चुनाव में 18 सीटें जीतने से उनका सीना फुला हुआ है। इन 18 लोकसभा क्षेत्रों की 122 विधानसभा क्षेत्र में भाजपा ने अपना परचम फहराया था। आज के हालातों को देखकर यह कहा जाना कि पश्चिम बंगाल में निश्चित रूप से भाजपा का कमल खिलने ही वाला है, थोड़ा जल्दबाजी होगी, क्योंकि बंगाल की राजनीति में मुस्लिम फैक्टर भी अहम है। ममता बनर्जी इसी समुदाय के बल पर फिर से सत्ता में लौटने की आस लगाए हुए हैं।

प्रदेश में करीब 30% मुस्लिम आबादी है। करीब 65 विधानसभा क्षेत्रों में उनका बाहुल्य है। तृणमूल कांग्रेस और भाजपा की सीधी लड़ाई की संभावना है। लेकिन, इन 65 क्षेत्रों में या तो त्रिकोणीय टकराव होगा, या फिर तृणमूल का मुकाबला किसी अन्य राजनीतिक दल से। बिहार के चुनावों से उत्साहित असदुद्दीन ओवैसी (Asaduddin Owaisi) पश्चिम बंगाल में भी अपने पैर जमाना चाहते हैं।

बिहार के मुस्लिम बहुल क्षेत्रों में 5 सीटें जीतकर वे अब उन सभी मुस्लिम बाहुल्य क्षेत्रों में अपना झंडा बुलंद करना चाहते हैं, जहां पर मुसलमान निर्णायक मतदाता हैं। इसी नजरिए से पश्चिम बंगाल के इन 65 क्षेत्रों पर ओवैसी की नजर है। इन इलाकों में ओवैसी तीसरे त्रिकोण के रूप में उभर कर आएंगे, इसकी संभावनाएं प्रबल है। अगर ऐसा होता है तो ममता बनर्जी की जमीन खिसकने के पूरे आसार हैं। ऐसी आशंकाओं के चलते ही ममता बनर्जी,  ओवैसी को भाजपा की बी-टीम बता रही हैं। अब यह आने वाला भविष्य ही बताएगा कि पश्चिम कमल कितनी प्रबलता से खिलता है।

(लेखक के निजी विचार हैं)