15 साल की कोमल की कहानी जिसे अपनों ने ठगा पहले धोखे से बाल विवाह फिर अनचाहा गर्भ और आखिर में आजादी

शादी का सपना हर लड़की किशोरावस्‍था से ही देखती है, क्‍योंकि इसमें उसके आगे के जीवन की रूपरेखा होती है। अपने जीवनसाथी को बिना जाने, बिना देखे ही वह अपने सपनों में नए-नए रंग भरती रहती है। बिहार के सहरसा जिले की कोमल (बदला नाम) की जिंदगी भी कुछ इसी फलसफे पर सामान्‍य तरीके से चल रही थी। 15 साल की कोमल अपनी पढ़ाई को जारी रखना चाहती थी, लेकिन परिवार के आर्थिक हालात इसकी मंजूरी नहीं दे रहे थे। हालांकि, जैसे-तैसे उसने पढ़ाई जारी रखी। यहां तक की उसकी जिंदगी दूसरी किशोरियों की तरह चल रही थी, लेकिन जिंदगी में कभी एक ऐसा मोड़ भी आता है, जो जिंदगी को पूरी तरह से बदलकर रख देता है। कोमल के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ।

एक गलत फैसले और अपनों के धोखे ने उसकी जिंदगी को कभी न भूलने वाले जख्‍म दे दिए। हैरान करने वाली बात यह है कि ये ‘अपने’ कोई और नहीं, बल्कि उसके मातृपक्ष से आने वाले एक रिश्‍तेदार का पूरा परिवार था। कोमल के परिवार की आर्थिक स्थिति और उसके आगे पढ़ने ख्‍वाहिश को ही, इस परिवार ने अपना हथियार बना लिया। ‘नटवरलाल’ की तरह इस ठग परिवार के दंपती और उसके बेटे ने कोमल को अपने जाल में फांसा। ठग परिवार ने कोमल को अपनी शातिराना बातों से यह भरोसा दिलाया कि वे उसकी शादी राजस्‍थान में एक अच्‍छे परिवार में करवा देंगे और शादी के बाद भी वह अपनी आगे की पढ़ाई अच्‍छे से पूरी कर सकेगी।

‘अंधा क्‍या चाहे, दो आंखें’ कुछ इसी तर्ज पर इस शातिर परिवार ने कोमल को अपने कुचक्र में पूरी तरह से फांस लिया। कई दिनों की जालसाजी के बाद यह ठग परिवार, कोमल को अपने साथ चलने पर राजी कर लेता है। इसके बाद की कहानी में सिर्फ दर्द, बेबसी, टूटे सपने और पछतावा है।

इस तरह एक मासूम बच्‍ची दरिंदों के जाल में फंस जाती है और एक दिन परिजनों को बिना बताए ठग परिवार के साथ ट्रेन के जरिए राजस्‍थान के कोटा जिले पहुंच जाती है। अपने साथ हो रही साजिश से अंजान मासूम कोमल की जिंदगी इतनी तेजी से बदलती जा रही थी कि उसे कुछ समझ ही नहीं आ रहा था। मानो ठग परिवार ने उस पर सम्‍मोहन सा कर दिया हो। वह चुपचाप उनकी हर बात मानती जा रही थी। अगले दिन उसे नजदीकी गांव इटावा में ले जाया जाता है। जहां वे सब एक स्‍थानीय परिवार के यहां रुकते हैं। यह रात कोमल की जिंदगी की सबसे काली और मनहूस रात साबित हुई। अगली सुबह इसी घर में उसकी शादी कुछ लोगों की मौजूदगी में करवा दी जाती है।

इसके बाद कोमल अपने पति के साथ उसके पैतृक जिले बूंदी में रहने आ जाती है। कुछ दिन तक तो सब सही चलता है, लेकिन इसके बाद जैसे ही कोमल अपने ससुर से मायके (सहरसा) जाने के लिए कहती है तो ससुर के तेवर एकदम से बदल जाते हैं। अभी तक कोमल को अपनी बहू की जगह बेटी मानने वाला ससुर अपनी असलियत पर आ जाता है। वह कोमल को बताता है कि उसे शादी के लिए खरीदा गया है और कोमल के रिश्‍तेदार लगने वाले ठग परिवार ने ही उसका सौदा किया है। यह सुनते ही कोमल के पैरों तले से मानो जमीन ही खिसक गई। वह कुछ समझ पाती, इससे पहले ही उस पर एक और वज्रपात हो गया, जब उसके ससुर ने कहा कि अपने पिता से एक लाख साठ हजार रुपए लाकर दे। अब धीरे-धीरे कोमल को सब कुछ समझ आ गया कि उसे बेचा गया है और वह भी अपनों के द्वारा ही। वह असहाय थी और उसे कुछ समझ ही नहीं आ रहा था। अंजान राज्‍य में अंजान व्‍यक्ति के घर में अब वह एक दासी सी हो गई थी, जिसे खरीदा गया है।

इधर, सहरसा में कोमल के लाचार पिता पुलिस थानों के चक्‍कर काटते रहे कि उसकी लापता बेटी को तलाशे, लेकिन पुलिस का सच किसी से छिपा नहीं है फिर गरीब की सुनवाई कौन करे। कोमल के परिवार को उसकी चिंता खाए जा रही थी।

लेकिन, कहानी अभी बाकी है कि तर्ज पर शायद कोमल की किस्‍मत में कुछ और भी लिखा था। शायद उसकी जिंदगी में एक नई सुबह आने वाली थी। दर-दर भटकने को मजबूर कोमल के पिता को बच्‍चों के लिए काम करने वाले संगठन ‘बचपन बचाओ आंदोलन’ का पता चला। यह वही संगठन है, जिसकी स्‍थापना नोबेल शांति पुरस्‍कार से सम्‍मानित कैलाश सत्‍यार्थी ने की थी। यह संगठन कोमल जैसी हजारों बच्चियों को रेस्‍क्‍यू कर चुका है। कोमल के पिता अपनी लापता बेटी की फरियाद लेकर संगठन के कार्यकर्ताओं के पास पहुंचे। कार्यकर्ताओं के कई दिनों के प्रयास और आला पुलिस अधिकारियों के पास शिकायत करने के बाद कोमल की गुमशुदगी का केस दर्ज हुआ।

इसके बाद भी चुनौती कम नहीं थी। न मोबाइल सर्विलांस, न कोई इनपुट, फिर भी पुलिस ने किसी तरह पता लगा लिया कि कोमल को उसके ही नजदीकी रिश्‍तेदार ने कोमल को राजस्‍थान में किसी को बेचा है। दरअसल, कोमल के लापता होने के बाद से ही यह ठग परिवार उसके यहां आने से कतराने लगा था, जो पहले हर दूसरे तीसरे दिन आता था। इसी से इस ठग परिवार पर पुलिस का शक गहरा गया था। इसके बाद बिहार पुलिस ने राजस्‍थान पुलिस के साथ सिरे से सिरा जोड़ते हुए बूंदी तक का सफर पूरा किया और कोमल को रेस्‍क्‍यू करने में कामयाबी पाई। साथ ही पुलिस ने इस मामले के सभी आरोपियों को गिरफ्तार कर जेल भी भेज दिया।

इस तरह कोमल की जिंदगी में एक नई सुबह आई। हालांकि वह चार माह की गर्भवती थी, लेकिन उसने अनचाही औलाद को जन्‍म देने से मना कर दिया। वह अपने साथ हुए अन्‍याय से नाखुश थी।

आज कोमल खुश है और सहरसा में अपने परिवार के साथ रह रही है। वह कहती है, ‘उस समय मुझे पता ही नहीं था कि मेरे साथ क्‍या हो रहा है, क्‍योंकि सब कुछ बहुत जल्‍दी हो गया। खैर मैं अब आगे की जिंदगी को खूबसूरत बनाना चाहती हूं। साथ ही कोमल ‘बचपन बचाओ आंदोलन’ का शुक्रिया करना नहीं भूलती, जिसने उसे नारकीय जीवन से निकालकर एक नई जिंदगी दी। एक नई सुबह दी।’

कोमल को नए सफर के लिए शुभकामनाएं।