न्यायालयों के जर्जर भवनों पर छलका CJI Ramana का दर्द law minister की उपस्थिति में गिनाए हैरान करने वाले आंकड़े

चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया एन.वी. रमना।

एक प्रभावी न्यायपालिका अर्थव्यवस्था के विकास में मदद करती है, लेकिन उन्हीं अदालतों का खुद का बुनियादी ढांचा चरमराया हो तो उनके काम करने की क्षमता कैसी होगी? इसका अंदाजा आसानी से लगाया जा सकता है। ज्यूडिशयरी की इन कमियों की ओर ध्यान दिलाते हुए चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया एन.वी. रमना (cji nv ramana) ने कहा कि देश की 26 प्रतिशत अदालतों में महिलाओं के लिए टॉयलेट नहीं हैं, जबकि 16 प्रतिशत अदालतों में पुरुषों के लिए टॉयलेट नहीं है। 46 प्रतिशत कोर्ट कॉम्प्लेक्सेज में पीने के लिए साफ पानी तक नहीं है। मेडिकल सुविधा की भी बात करें तो सिर्फ 5 प्रतिशत कोर्ट परिसरों में यह सुविधा देखने को मिलेगी। कुछ अदालतें जर्जर इमारतों में चल रही हैं।

चीफ जस्टिस रमना ने यह बात बॉम्बे हाइकोर्ट की औरंगाबाद बेंच के नए एनेक्स भवन के उद्घाटन समारोह के दौरान कहीं। केंद्रीय कानून मंत्री किरेन रिजिजू (kiren rijiju) की उपस्थिति में उन्होंने देश के न्यायिक बुनियादी ढांचे के बारे में चिंता जताई। उनका कहना था कि भारत में अदालतें अभी भी जीर्ण-शीर्ण संरचनाओं के साथ काम करती हैं। उचित बुनियादी ढांचे की आवश्यकता पर जोर देते हुए रमना ने कहा कि यदि आप न्यायिक प्रणाली में कुछ हटकर परिणाम चाहते हैं तो हम इस वर्तमान स्थिति में काम नहीं कर सकते हैं। इससे जुड़े अहम प्रस्ताव पर उन्होंने कहा कि मैंने केंद्रीय कानून मंत्री को प्रस्ताव भेजा है। मैं जल्द की सकारात्मक प्रतिक्रिया की उम्मीद कर रहा हूं।

चीफ जस्टिस रमना ने कहा कि कई बार लोग अदालतों में जाने से बचते हैं, क्योंकि लोगों का यह मानना होता है कि केवल अपराधी और पीड़ित की अदालत का दरवाजा खटखटाते हैं, लेकिन अब समय आ गया है कि हम लोगों की इस धारणा को दूर करें। न्यायपालिका पर लोगों का भरोसा ही लोकतंत्र की सबसे बड़ी ताकत है। आम आदमी अपने जीवन में कई कानूनी मुद्दों से निपटता है। इसलिए किसी को भी अदालतों का दरवाजा खटखटाने में संकोच नहीं करना चाहिए।

चीफ जस्टिस रमना ने कहा कि जिस भवन का आज उद्घाटन हो रहा है, उसकी परिकल्पना 2011 में की गई थी। यह गहरी चिंता का विषय है कि इसे पूरा करने में दस साल का समय लग गया है।