मासूम kurjans को लगी किसकी नजर jodhpur में आखिर क्यों बन रही विदेशी मेहमानों की कब्र

जोधपुर (jodhpur) के कापरड़ा में लगातार कुरजां (Kurjans) पक्षी की मौत की खबरें आ रही हैं। रविवार को 15 और कुरजां तालाब के पानी में मृत मिलीं। इससे पहले शनिवार को 56 कुरजां की मौत हो गई थीं। दो दिन में 71 कुरजां की मौत होना गंभीर है। 70 कुरजां इतनी बीमार हैं कि वो दो दिन से उड़ नहीं पा रही है। जान का जोखिम देखते हुए स्वस्थ कुरजां ने खुद ही तालाब को छोड़ दिया।

वन विभाग और पशुपालन विभाग की मेडिकल टीम के साथ जयपुर से आई एनजीओ रक्षा संस्थान के रोहित गंगवार के नेतृत्व में बर्ड्स वॉलिंटीयर्स की टीम ने रविवार को तालाब से 15 कुरजां के शव निकाले।

मेडिकल टीम ने मौके पर तीन कुरजां का पोस्टमार्टम किया। सैंपल जांच के लिए भोपाल भेजे गए हैं। प्रारंभिक जांच में कुरजां में रानीखेत बीमारी के लक्षण मिले हैं। बचाव के लिए तालाब में वैक्सीन भी डाली गई हैं। इससे पहले सांभर में भी दस दिनों में करीब 18000 से भी अधिक प्रवासी पक्षियों की मौत की खबर मिली थी।

रानीखेत बीमारी से हो चुकी मोरों की भी मौत

कुछ महीनों पहले रानीखेत (ranikhet) बीमारी ही रोहट क्षेत्र में मोरों की मौत का कारण बन चुकी है। रोहट क्षेत्र के भाकरीवाला, सांवलता के आसपास के गांवों में एक महीने में 30 मोरों की मौत व 80 से अधिक मोरों की हालत गंभीर होने की सूचना मिली थी। जांच के बाद इनमें रानीखेत बीमारी की पुष्टि की गई। इससे बचाव के लिए लसोटी नाम की वैक्सीन मोरों को पीने के पानी में मिलाकर दी गई। 

डॉक्टरों ने बीमारी को बताया सामान्य वायरल

रानीखेत बीमारी के बारे में डॉक्टरों का कहना है कि यह एक सामान्य वायरल हैं, जो किसी भी क्षेत्र के पक्षियों में फैल सकता है। हालांकि, बर्ड फ्लू की तरह यह बीमारी इंसानों में नहीं फैलती।

क्यों पड़ा बीमारी का नाम रानीखेत

सबसे पहले उत्तराखंड के रानीखेत क्षेत्र में पक्षियों में इस बीमारी का प्रकोप देखने को मिला था। रानीखेत रोग एक विषाणुजन्य बीमारी है, जो मुर्गी, कौओं, मोर और अन्य पक्षियों में फैलती है। इससे पक्षी दो-तीन में ही कमजोर हो जाते हैं। इससे उनकी मौत हो जाती है।

हर साल आते हैं ये प्रवासी पक्षी

प्रवासी पक्षी (migratory bird) डेमोइसेल क्रेन को स्थानीय भाषा में कुरजां कहते हैं। कुरजां अधिकतर बीकानेर संभाग और जोधपुर संभाग के फलौदी, लोर्डिया गांवों में तालाब पर पानी पीने आते हैं। ये पक्षी साइबेरिया से ईरान, अफगानिस्तान आदि देशों से होते हुए भारत में प्रतिवर्ष आते हैं।